विधायक जी (Vidhayak ji): (Neta Neta ki kahani)
राजनीति सभी के लिए रोमांचक विषय होता है, क्योंकि राजनीति ही देश की अर्थव्यवस्था को दिशा देती है, लेकिन कई बार राजनीतिक विरोध के चलते, लोगों के आपसी झगड़े होते रहते हैं| इन सब घटनाओं को उजागर करते हुए, आपके लिए विधायक जी (vidhayak ji) एक मजेदार कहानी प्रस्तुत है| मुझे आशा है कि, पाठकों को यह कहानी पसंद आएगी| एक छोटा सा शहर था| शहर की आबादी अधिक थी, इसलिए शहर में अव्यवस्था बनी रहती थी| इसी शहर में मनोज नाम का एक लड़का रहता था, जिसे सामाजिक कार्यों में अधिक रुचि थी| मनोज अक्सर शहर की गलियों का मुआयना करता रहता था और जहाँ भी कोई समस्या होती, वह ख़ुद ही मदद करने के लिए आगे आ जाता था| उसके कार्य को शहर के लोग प्रोत्साहित किया करते थे| सभी उसे नेता नेता (Neta Neta) कह कर बुलाया करते थे| मनोज के सम्मान को देखकर, बाक़ी राजनैतिक दल के नेता, उससे ईर्ष्या भाव रखते थे, हालाँकि मनोज किसी राजनीतिक दल से संबंध नहीं रखता था, लेकिन सभी दलों के लोग, उसे बख़ूबी पहचानते थे| मनोज को जितना ज़्यादा प्यार, आम लोगों से मिलता था, उससे कहीं ज़्यादा नफ़रत, उसके परिवार वाले उससे करते थे| दरअसल मनोज के पिता जी नहीं चाहते थे कि, वह समाज सेवा के कार्य में, अपना समय बर्बाद करें| वह उसे आवारा समझते थे| आए दिन मनोज की लड़ाई झगड़े की ख़बर आती रहती थी| जिससे उसके परिवार के सभी लोग तंग आ चुके थे| मनोज शादीशुदा था, लेकिन पारिवारिक तालमेल बिगड़ने की वजह से, वह अपनी पत्नी को मायके भेज चुका था| दरअसल मनोज, एक आज़ाद ख्यालों का व्यक्ति था| वह शहर की सारी जनता को अपना परिवार समझता था, इसलिए वह दिनभर, घर के बाहर ही घूमता रहता था| कुछ ही महीनों में विधानसभा चुनाव होने वाले थे, जिसके लिए सभी दल के नेता, अपना प्रचार प्रसार कर रहे थे| शहर की यातायात व्यवस्था गड़बड़ा चुकी थी| बारिश का मौसम शुरू हो चुका था| सड़कों पर कीचड़ फैला हुआ था| लोगों को आवागमन में परेशानी झेलनी पड़ रही थी| इसी दौरान मनोज शहर के कई इलाकों में जाकर, व्यवस्थाओं को दुरुस्त करने में लगा हुआ था| अचानक शहर में वारिस तेज़ होने लगती है| चुनाव की रैलियां रोक दी जाती हैं| लोग अपने घरों में, सिमटने में मजबूर हो जाते हैं| देखते ही देखते आस पास की कई नदी और नाले उफान मारने लगते हैं|
शहर के निचले स्तर में, जो भी घर बने हुए थे, वह डूबने लगे थे| यातायात व्यवस्था करने में, प्रशासन का रवैया ढीला ढाला था| लोगों के हालात बद से बदतर होते जा रही थी| खाने पीने की सारी चीज़ें बर्बाद हो चुकी थी और यहाँ मनोज के मोहल्ले में, नदी का किनारा नज़दीक होने की वजह से, सबसे ज़्यादा तबाही हुई थी| मनोज का घर दो मंज़िला था, लेकिन इसके बावजूद भी, वह आधे से ज़्यादा डूब चुका था| मनोज के परिवार वाले, घर की छतों पर डरे सहमें से बैठे हुए थे| घर के चारों तरफ़ पानी की लहरें तबाही का तांडव मचा रही थी, लेकिन वह अपने परिवार को छोड़कर, शहर में हर उस मोहल्ले में जाकर, लोगों की मदद करता है, जहाँ पानी की वजह से, अव्यवस्था फैली हुई थी| लोग रोते हुए मनोज के आस पास नेता नेता (Neta Neta) चिल्लाते हुए पीछे दौड़ रहे थे| किसी का बच्चा नहीं मिल रहा था तो, किसी की माँ का पता नहीं था और तो और, कुछ लोग ऐसे भी थे कि, उनका पूरा परिवार ही लापता था| मनोज अपने साथियों के साथ कई लोगों के, घर के अंदर घुसकर, उनकी ज़रूरी चीज़ों को बाहर निकालने में, उनकी मदद करता है| मनोज का क़द लंबा था, जिसकी वजह से वह, गहरे पानी से भी, लोगों को सुरक्षित बाहर निकाल पा रहा था| इस हादसे ने पूरे शहर को तबाह कर दिया था, लेकिन इस आपदा ने, शहर को मनोज के रूप में, अपना रक्षक दे दिया था| इस घटना के बाद, शहरवासियों को मनोज से, काफ़ी उम्मीद लगने लगी| मूसलाधार वारिस की वजह से, सभी चुनावी दलों का प्रचार प्रसार फीका पड़ चुका था| विधानसभा चुनाव के सभी उम्मीदवार, अपना नामांकन दर्ज करवाने में लगे थे, लेकिन जनता का रुख़ कुछ और ही था| जनता इस बार, बदलाव की उम्मीद कर रही थी, इसलिए सभी अपने ही बीच से, कोई ऐसा व्यक्ति लाना चाह रहे थे जो, इनके अच्छे और बुरे दोनों वक़्त में इनका साथ न छोड़ें| शहर की जनता ने बाढ़ की त्रासदी में, नेताओं का दोगलापन देखा था| सभी दुबक कर अपने अपने घरों में छुपे थे| किसी को जनता की कोई सुध नहीं थी, लेकिन एक ही व्यक्ति जो कि राजनीतिक दलों में भी शामिल नहीं था, उसने आगे आकर शहरवासियों की मदद की थी| सभी मनोज को अपना चुनावी उम्मीदवार बनाना चाहते हैं| चुनावी दौर के बीच मनोज, अपने घर के हालातों से लड़ने में लगा हुआ था| बाढ़ की वजह से उसके घर की सभी चीज़ बर्बाद हो चुकी थी| यहाँ तक की, एक भी कपड़े सुरक्षित नहीं बचे थे| मनोज अपने घर की साफ़ सफ़ाई कर रहा था| तभी लोगों की भीड़, मनोज के घर के सामने, विधायक जी ज़िंदाबाद के नारे लगाने लगती है| मनोज बाहर आकर देखता है| उसे कुछ समझ में नहीं आता कि, अचानक नेता से लोग उसे, विधायक जी क्यों कहने लगे? भीड़ में शामिल, एक बुजुर्ग व्यक्ति, बाहर निकल के आते हैं और वह मनोज के सामने, हाथ जोड़कर खड़े हो जाते हैं और कहते हैं, “आप शहर के रक्षक हो| आपने जिस तरीक़े से बाढ़ में हम लोगों की मदद की है, हम चाहते हैं, आप इस विधानसभा चुनाव में खड़े हो और विधायक बने, ताकि हमारे शहर का विकास हो सके”| मनोज को राजनीतिक पद का लोभ नहीं था| वह सिर्फ़ जनता की मदद करने का इच्छुक था, इसलिए वह सभी को हाथ जोड़कर मना कर देता है, लेकिन लोग उसके घर के सामने धरना देकर बैठ जाते हैं और कहते हैं, “जब तक मनोज भैया चुनाव में अपना नाम दर्ज नहीं करवाएंगे, तब तक हम बिना कुछ खाए पिए यहीं बैठे रहेंगे”| मनोज के सामने बड़ी दुविधा थी| धीरे धीरे करके इन लोगों की भीड़ बढ़ने लगती है और ३-४ घंटों में, लोगों की भीड़, रोड तक जमा हो जाती है| जनता का रुख़ पता चल चुका था| मनोज भीड़ के बीच में बढ़ते हुए, एक ज़ोरदार आवाज़ के साथ, चुनाव में उतरने का ऐलान कर देता है|
मनोज का हाथ हवा में उठते ही, लोग उसे कंधे में उठा लेते हैं और विधायक जी ज़िंदाबाद के नारे, गलियों में गूंजने लगते हैं| मनोज की लोकप्रियता देख, उसके पिताजी को मन ही मन प्रसन्नता होती है, लेकिन उन्होंने अपने सामने कई राजनीतिक, लडकों को पूरी ज़िंदगी बर्बाद होते हुए देखा था, इसलिए उन्हें मनोज का राजनीतिक कार्य पसंद नहीं था, लेकिन शहर का रुख़ बदल चुका था और अब शहर की गलियों में, मनोज भैया के नारे गूंजने लगते हैं| मनोज के पास चुनाव में प्रचार करने के लिए, पैसों की कमी थी, लेकिन जनता के प्यार की वजह से, उसे चुनावी खर्चों के लिए, कोई समस्या नहीं हो रही थी| सभी बढ़ चढ़कर, कुछ न कुछ मदद कर रहे थे| मनोज के चुनाव में खड़े होने से, सभी राजनीतिक दलों के अंदर, हार का डर छाने लगता है| सभी को पता था, मनोज एक आँधी था जो, अपनी लोकप्रियता के चलते, सभी पार्टियों के पत्तों को बिखेरने वाला था| कई बड़े चुनावी दल, मनोज को गुप्त रूप से, एक बड़ी रक़म का लालच देते हैं और उसे चुनाव से अपना नाम हटाने का दबाव डालते हैं, लेकिन मनोज को, न ही पैसों का लालच था और न ही पद का| वह जो भी कर रहा था, सिर्फ़ और सिर्फ़ जनता के हालातों को बेहतर करने के लिए था| एक दिन मनोज अपने पिताजी के लिए, दवाई लेने जा रहा था, अचानक एक गाड़ी उसके पीछे से, ज़ोरदार टक्कर मारती है और वह सड़क पर काफ़ी दूर तक, फिसलते हुए ज़ख़्मी हो जाता है| मनोज को आनन फ़ानन में, अस्पताल लाया जाता है| चुनावी उम्मीदवार का एक्सीडेंट होने से, शहर में अव्यवस्था बढ़ने लगती है| लोगों में ग़ुस्सा और नफ़रत के चलते, आपसी झगड़े बढ़ जाते हैं, हालाँकि ऐक्सिडेंट के बावजूद भी, मनोज ख़तरे से बाहर होता है| मनोज होश में आते ही, शहर के हालातों का जायज़ा लेता है और जैसे ही, उसे पता चलता है कि, शहर की व्यवस्थाएं बिगड़ती जा रही है| वह अस्पताल से बाहर आकर, सभी से शांति बनाए रखने का निवेदन करता है| सभी को अच्छी तरह से पता था कि, यह हमला राजनीतिक रंजिश का नतीजा है, लेकिन सबूतों के अभाव की वजह से, गुनेहगार बच जाते हैं| नेताओं ने मनोज को, अपने रास्ते से हटाने के लिए, उस पर हमला करवाया था, लेकिन अब मनोज, एक मज़बूत उम्मीदवार बन चुका था| जनता के दिलों में, मनोज का स्थान बढ़ता जा रहा था| दो दिन बाद शहर में चुनाव होने वाला था, इसलिए शहर की पुलिस व्यवस्था दुरुस्त कर दी जाती है| शहर की गलियों में, पुलिस की गाड़ियां, सायरन बजाते हुए घूम रही होती है| शहरवासियों में चुनाव को लेकर काफ़ी उत्साह था, लेकिन वही दूसरी तरफ़, बाढ़ की चपेट में आयी आबादी, तबाही से जूझने में लगी हुई थी| दो दिन गुज़रते ही चुनाव की घड़ी आ जाती है| लोग अपने घरों से, अपना परिचय पत्र लेकर, पोलिंग बूथ पहुँच जाते हैं| वोटिंग प्रारंभ होते ही, जनता लंबी लंबी लाइनें लगाकर, अपने अपने उम्मीदवार को विजयी बनाने के लिए, इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन में, बटन दबाने लगती है|
वोटिंग अलग अलग केंद्रों में, दो दिनों तक चलती है और चुनाव संपन्न होते ही, ये सारे दल मीडिया में आकर, अपनी अपनी जीत का दावा करने लगते हैं| शहर की जनता, नतीजों का इंतज़ार कर रही थी और जैसे ही, विधायक के लिए, मनोज का नाम घोषित किया जाता है| जनता में जोश की लहर बहने लगती है| मनोज के घर के आस पास, हज़ारों की तादाद में लोग, भीड़ लगाकर विधायक जी-विधायक जी चिल्लाने लगते हैं| मनोज अब सामान्य नेता से शहर का विधायक बन चुका था| मनोज की जीत से उसके परिवार वालों को, गर्व महसूस हो रहा था| उसके पिता, उसे उत्साह भरी नज़रों से देखते हैं, क्योंकि जनता के प्यार को देखकर, अब वह समझ चुके थे कि, हमारा बेटा जो कर रहा था, वह सही था|, हम ही उसे नहीं समझ पाए| मनोज तुरंत अपने पिताजी के पैर छूता है| मनोज के पिता, उसे अपने गले से लगा लेते हैं| मनोज की जीत का जश्न, पूरे शहर में मनाया जाता है| लोगों को इसी बदलाव की ज़रूरत थी| मनोज के विधायक बनते ही, गाड़ियों का क़ाफ़िला, उसके पीछे चलने लगता है| मनोज अब एक हस्ती बन चुका था, लेकिन उसे अपने विधायक बनने की ख़ुशी से ज़्यादा, शहर की व्यवस्थाओं की चिंता थी| मनोज अपना पदभार ग्रहण करते ही, बाढ़ पीड़ित लोगों को मुआवज़ा दिलवा देता है, जिससे पूरे शहर में, मनोज की जयजयकार होने लगती है और इसी के साथ, मनोज शहर का चहेता नेता बन जाता है और इस कहानी के आख़िरी पन्ने के बंद होते ही, मनोज की राजनैतिक कहानी शुरू हो जाती है|