किन्नर (Kinnar or Hijra)– सीख देने वाली कहानी (real motivational story):
किन्नर (Kinnar) या हिजड़ा (Hijra) हमारे समाज का वह तबक़ा है जिसे, सारी दुनिया में केवल लिंग के आधार पर, कई तरह के अधिकारों से वंचित किया गया है| सबसे बड़ा सवाल यह है कि, क्या किसी का लिंग, उसकी बुद्धिमत्ता का परिचायक हो सकता है या, हमें अपनी बनायी हुई नीतियों पर, फिर से विचार करने की आवश्यकता है? मुझे आशा है| यह सीख देने वाली कहानी आपको, इस विषय पर गंभीरता से विचार करने के लिए प्रेरित करेगी| अंजली और दीपक में बचपन से ही गहरी मित्रता थी| दोनों एक ही स्कूल में पढ़ते थे| बचपन से ही दीपक का रवैया लड़कियों की तरह था| ज़्यादातर लड़के, दीपक को लड़कियों के साथ रहने की वजह से ही चिढ़ाते रहते हालाँकि, दीपक को इस बात से कोई फ़र्क नहीं पड़ता था लेकिन, जैसे ही दीपक 10वीं क्लास पहुँचा उसने, अपने घर पर लड़कियों की तरह कपड़े पहनना शुरू कर दिये| दरअसल दीपक किन्नर था लेकिन, उसके माता पिता ने यह बात सभी से छुपाकर रखी और अपने बच्चे को, सबकी नज़रों से बचाकर लड़कों की तरह पालते रहे लेकिन, अब दीपक को लड़कों की तरह रहने में घुटन होने लगी थी क्योंकि, उसे अंदर से एहसास था कि, “उसका शरीर भले ही लड़के की तरह दिखाई देता हो लेकिन, उसकी भावनाएँ लड़कियों की तरह हैं और उसे यही जीवन पसंद है|” बस फिर क्या था| दीपक ने अपने वास्तविक रूप को, पूरी तरह अपना लिया और स्कूल पहुँच गया| उसके बदले हुए रूप को देखकर, स्कूल में मौजूद छात्र छात्राओं के साथ शिक्षक भी हैरान हो गए लेकिन, अंजली अपने दोस्त के पास पहुँच कर, उसके नए रूप के बारे में पूछने लगी| दीपक ने रोते हुए, अंजलि को अपनी असलियत बता दी हालाँकि, अंजलि ने उसे दिलासा देते हुए कहा, “तो क्या फ़र्क पड़ता है| मैं तुम्हारी दोस्त हूँ और हमेशा रहूंगी” लेकिन अंजलि को डर था कि, “दीपक के इस बदले रूप को, स्कूल के बाक़ी बच्चे स्वीकार करेंगे या नहीं?” हुआ भी ऐसा ही, पहले ही दिन, दीपक को पूरी क्लास के सामने ज़लील होना पड़ा| सभी विद्यार्थियों ने उसके लड़कियों वाले कपड़े देख, उसका मज़ाक उड़ाना शुरू कर दिया लेकिन, जब बात सर के ऊपर हो गई तो, दीपक रोते हुए अपने घर वापस आ गया|
दीपक के साथ हुए बुरे बर्ताव की वजह से, उसके पिता को बहुत बुरा लगा| वह अपने बेटे को लेकर स्कूल पहुँचे और उन्होंने शिक्षकों को, अपने बेटे की सच्चाई बताते हुए कहा कि, मैंने अब तक सबसे छुपाकर रखा कि, मेरा बेटा किन्नर है लेकिन, अब बात सबके सामने आ ही चुकी है तो, मैं आपसे चाहता हूँ कि, विद्यालय में दीपक को लड़कियों की तरह कपड़े पहन कर आने की इजाज़त दी जाए लेकिन, प्रशासनिक नियमों के तहत, लिंग के आधार पर शिक्षा देने का चलन, कई वर्षों से चला आ रहा है इसलिए, स्कूल के प्रबंधन ने, दीपक को निष्कासित कर दिया| स्कूल से अपना नाम हटाए जाने से, दीपक टूट चुका था लेकिन, उससे भी ज़्यादा तक़लीफ़ अंजलि महसूस कर रही थी| उसे समाज और प्रशासन के बनाए हुए, लिंग आधारित शिक्षा पद्धति पर क्रोध आ रहा था| उसने तय किया कि, “वह दीपक को इंसाफ़ दिलवाकर रहेगी|” यहाँ दूसरी तरफ़ जैसे ही, किन्नर (Kinnar) समाज को मामले का पता चला, वह अपना समूह लेकर दीपक को लेने, उसके घर पहुँच गए| उनसे मिलते ही दीपक डर गया| किन्नरों ने दीपक के पिता को, किन्नर समाज की पूरी प्रक्रिया बतायी| धीरे धीरे दीपक के पिता को लगने लगा कि, “दीपक का भविष्य किन्नरों के साथ ही हो सकता है क्योंकि, आम लड़के लड़कियाँ दीपक को कभी नहीं अपनाएंगे” इसलिए, वह अपने बेटे को भेजने के लिए मान जाते हैं लेकिन, दीपक अपने पिता से रोते हुए कहता है, “पापा मैं ज़िंदगी भर सड़क पर ढोलक नहीं बजाना चाहता बल्कि, मैं एक वैज्ञानिक बनना चाहता हूँ| बस मेरी भावनाएँ लड़कियों की तरह है लेकिन, मेरी बुद्धि विज्ञान के विद्यार्थी की तरह है|” लेकिन, किन्नरों के सामने दीपक की कोई दलील नहीं चली| वह दीपक के पिता को मजबूर करके, ज़बरदस्ती दीपक को अपने साथ ले जाते हैं| कुछ दिनों तक दीपक अपनी दोस्त अंजली और परिवार को याद करता है लेकिन, धीरे धीरे वक़्त के साथ वह किन्नरों की तरह, गाने बजाने में लग जाता है| गुज़रते वक़्त के साथ, कुछ ही सालों में दीपक पूरी तरह किन्नर बन चुका था|
एक दिन दीपक ने, अपने गले में ढोलक टाँगें हुए, ट्रैफ़िक सिग्नल पर ताली बजाते हुए, एक कार का दरवाज़ा खटखटाया| जैसे ही, कार का गेट खुला| दीपक अपना मुँह छुपाने लगा| दरअसल, कार के अंदर अंजली, अपने पति के साथ बैठी थी| दीपक को मुँह छुपाते देख अंजली उसे पहचान लेती है और जैसे ही, उसे दीपक का किन्नर वाला रूप दिखाई दिया, उसके होश उड़ गए| अंजलि तुरंत सड़क पर उतरकर, दीपक को गले लगाकर रोने लगती है| दीपक अंजलि को चुप करवाते हुए कहता है कि, “तुम मेरी चिंता मत करो| मुझे अब इसी काम में मज़ा आने लगा है और अब मेरी यही दुनिया है लेकिन, अंजली दीपक को बचपन से जानती थी| उसे पूरा यक़ीन था कि, दीपक बड़े होकर देश के लिए, एक बड़ा काम करेगा लेकिन, आज वह गले में ढोलक टाँगें हुए, लोगों का मनोरंजन करने पर मजबूर है| बस फिर क्या था| अंजलि ने दीपक को इंसाफ़ दिलवाने का बीड़ा उठा लिया| अंजलि के पति एक वक़ील थे इसलिए, उन्होंने अपनी पत्नी की बात से सहमत होकर, किन्नरों को स्त्री-पुरुष के तरह, सामान अधिकार दिलाने हेतु मुक़दमा दर्ज करा दिया| यह मामला अपने आप में बहुत बड़ा था इसलिए, न्यायाधीश ने मामले को, सरकार के अधिकारों का हवाला देते हुए, अनिश्चित काल तक स्थगित कर दिया लेकिन, अंजलि कहाँ रुकने वाली थी| उसने किन्नर समाज से मिलकर, एक आंदोलन की शुरुआत कर दी| धीरे धीरे आंदोलन का रूप विशाल होता गया| आंदोलन की नेतृत्व कर रहीं अंजलि ने, अपने आक्रामक तेवरों से, पूरे मीडिया जगत में तहलका मचा दिया|
देखते देखते मुद्दा अंतरराष्ट्रीय होने लगा| जब नेताओं को किन्नरों के आंदोलन की ताक़त का पता चला तो, वह तुरंत अधिकारियों के साथ, किन्नरों की माँगें सुनने पहुँच गए| अंजलि ने सार्वजनिक दलील देते हुए कहा कि, “किन्नर समाज अब एक मनुष्य की तरह सामान्य अधिकार चाहता है जिस तरह, स्त्री और पुरुष को पढ़ने लिखने, नौकरी करने का अधिकार होता है उसी तरह से, किन्नरों को भी होना चाहिए| क्या, किसी के बुद्धि और विवेक की कोई क़ीमत नहीं? लिंग ही सब कुछ है|” अंजलि की बात सुनकर, नेताओं के बीच फुसफुसाहट पर होने लगी| दरअसल, उन्हें अंदर से लग रहा था कि, अंजलि की बात में दम है लेकिन, वह कर भी क्या सकते हैं| वर्षों से चली आ रही सोच के अनुसार, पहले पुरुष को प्राथमिकता दी जाती है फिर, स्त्री को और उसके बाद, किन्नरों को सीमित अधिकारों के तहत, समाज के बीच केवल मनोरंजन का पात्र बनने के लिए, छोड़ दिया जाता है| नेताओं ने किन्नर समाज को, आश्वासन देते हुए कहा कि, “इस पार्लियामेंट की अगली सुनवाई में, यह मुद्दा प्रखर रूप से उठाया जाएगा| तब तक के लिए, आप लोग अपना आंदोलन रोक दीजिए| अन्यथा, क़ानून व्यवस्था को संभालना मुश्किल हो जाएगा| किन्नर समाज ने समझदारी का परिचय देते हुए, प्रशासन के समझाने पर आंदोलन रोक दिया लेकिन, अंजली ने अपने साहस से, बारूद के ढेर में चिन्गारी तो लगा ही दी थी| बस धमाका होना बाक़ी था और इसी के साथ कहानी ख़त्म हो जाती है|