सौतेली माँ | sauteli maa | Best motivation story

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सौतेली माँ (sauteli maa) Best motivation story:

माँ प्रकृति का दिया हुआ अनमोल उपहार है, लेकिन जैसे ही इसके साथ “सौतेला” शब्द जुड़ता है, लोगों का मन नकारात्मकता से भर जाता है| हमारे समाज में सौतेली माँ (sauteli maa) को झगड़ालू और अपने सौतेले बच्चे को, कष्ट देने वाली तथा अपने पति के कान भरने वाली समझा जाता है, लेकिन इस रंगीन दुनिया में रिश्ते निभाने वाले पर निर्भर है, कि वह उसे कैसे निभाते हैं| दोस्तों यह कहानी (Best motivation story) एक सौतेली माँ की है, जिसने अपने प्यार की ऐसी मिसाल पेश की, कि लोगों की सौतेली माँ के प्रति सोच ही बदल गई| प्रीतमपुर गाँव में एक ज़मींदार रहते थे| उनका आठ वर्ष का एक बेटा था, जिसका नाम विक्रम था| वह उम्र में छोटा ज़रूर था, लेकिन उसकी ठाठ में कोई कमी नहीं थी| वह राजा महाराजाओं की तरह बर्ताव किया करता था| हवेली के सारे नौकर विक्रम के इशारों पर नाचा करते थे| उसके बात करने का अंदाज़ शाही था| विक्रम की माँ, यानी जमींदार की पत्नी का छह माह पूर्व देहांत हो चुका था| जमींदार अपने बच्चे की जवाबदारी, अकेले नहीं संभाल पा रहे थे, इसलिए वह दूसरी शादी करने का विचार करते हैं| गाँव के पंडितजी, उन्हें पहले ही कई रिश्ते दिखा चुके थे| उन्हीं में से एक अच्छी पढ़ी लिखी लड़की, ज़मींदार को पसंद आती है| वह एक ग़रीब परिवार की लड़की थी| उसके पिताजी अपनी बच्ची के भविष्य के लिए, एक बड़े घर में रिश्ता करना चाहते हैं और जमींदार एक बहुत बड़ी हवेली का मालिक होने के साथ साथ, कई तरह के कारोबारों का भी मालिक था| जिसे देखकर लड़की के पिता, एक बच्चे के बाप से अपनी बेटी की शादी करने को तैयार थे| दोनों की उम्र में लगभग 12 वर्ष का अंतर था| पंडितजी अच्छा मुहूर्त देखकर दोनों की शादी बड़ी धूमधाम से करवाते हैं| गाँव में ज़मींदार की बहुत इज़्ज़त थी, इसलिये शादी में पूरा गाँव शरीक होता है| बारात में जमींदार का बेटा, विक्रम भी घोड़े में बैठा होता है| वह देखने में बहुत सुंदर था| बारात में सभी उसे देख रहे होते हैं, लेकिन विक्रम को अपनी नई माँ से मिलने की जल्दी होती है| बारात में सिर्फ़ वह उन्हें देख पाया था| अब वह उनसे मिलने का इच्छुक था| पहली बार, अपनी सौतेली माँ के घर आते ही, विक्रम उनका राजसी स्वागत करता है| वह भी, आते ही विक्रम को प्यार से गले लगा लेती है| ज़मींदार की नई पत्नी स्वभाव से बहुत शांत और सुशील थी| वह विक्रम को देखकर ख़ुश हो जाती है| विक्रम बहुत प्यारा बच्चा था, इसलिए वह पहली ही नज़र में, उसे अच्छा लगने लगता है| वह विक्रम को एक सगी माँ की तरह प्यार करने लगती हैं| विक्रम के जीवन में खुशियां आ चुकी थी और अपनी सौतेली माँ के आने से विक्रम, अपने पिता से भी ज़्यादा ख़ुश था| उसे अब, अपनी सगी माँ की कमी महसूस नहीं हो रही थी| उसका जीवन ख़ुशहाल हो चुका था| एक दिन जमींदार सुबह सुबह बिना नाश्ता किये ही, घर से निकल जाते हैं और दोपहर को वापस लौटते हैं, लेकिन बिना कुछ खाए पिए, अपने कमरे में चले जाते हैं| कई घंटों तक जब उनके कमरे का दरवाज़ा नहीं खुलता, तो उनकी पत्नी दरवाज़ा खटखटाती है| काफ़ी देर तक दरवाज़ा खटखटाने पर भी, अंदर से किसी की आहट सुनाई नहीं देती| तभी वह नौकरों से दरवाज़ा तोड़ने को कहती है और जैसे दरवाज़ा खुलता है, उनके पैरों तले ज़मीन खिसक जाती है| जमींदार फाँसी के फंदे से लटक रहे होते हैं और उनके बिस्तर पर, एक चिट्ठी रखी होती है| इतनी कम उम्र में बेचारी का सुहाग उजड़ चुका था| अपने पिता की मौत की ख़बर सुनकर, विक्रम को गहरा आघात पहुँचता है| वह मानसिक तौर पर हतोत्साहित हो जाता है| अभी अभी उसके जीवन में सौतेली माँ के रूप में खुशियाँ आयी थी, लेकिन अब उसके सिर से पिता का साया हट चुका था| दोनों का बहुत कुछ छिन चुका था, लेकिन अभी तो दुखों की कुछ बूंदें ही गिरी थी, सैलाब आना बाक़ी था| जैसे ही जमींदार की पत्नी, उनकी लिखी चिट्ठी पड़ती है तो, उसके होश उड़ जाते हैं|

सौतेली माँ best motivation story in hindi
image by rawpixel

जमींदार की सारी संपत्ति छिन चुकी थी और अब वह कर्ज़दार हो चुके होते हैं| दरअसल उन्होंने एक प्रोजेक्ट में, बैंक से लोन लेकर बहुत बड़ा निवेश किया था, जिसके लिए उन्होंने अपनी सारी ज़मीन जायदाद गिरवी रख दी थी, लेकिन वह प्रोजेक्ट बर्बाद हो गया, जिससे उन्हें भारी नुक़सान हुआ और अब उनकी सारी संपत्ति नीलाम होने वाली थी| विक्रम अनाथ के साथ साथ ग़रीब भी हो चुका था| ज़मींदार की मौत के कुछ दिनों के बाद ही, इनकी सारी संपत्ति नीलाम कर दी जाती है और इन्हें सारे कारोबार के साथ साथ, हवेली को भी छोड़कर जाना पड़ता है| विक्रम और उसकी सौतेली माँ बेघर हो चुके थे| लड़की के पिता, उसकी दूसरी शादी का विचार कर रहे थे, लेकिन वह अपने बच्चे से बहुत प्यार करती थी| वह उसे अकेला छोड़कर, ज़िंदगी नहीं बसाना चाहती थी, इसलिए वह अपने पिता के घर नहीं जाती| लड़की के सारे रास्ते बंद हो चुके थे, लेकिन गाँव के लोगों की मदद से, उन्हें इतने पैसे तो मिल चुके थे कि, वह कुछ महीने किराये के घर में गुज़ार सकें| विक्रम की सौतेली माँ पढ़ी लिखी थी| वह शहर जाने का फ़ैसला करती है और थोड़ा बहुत सामान लेकर, अपने बच्चे के साथ, बस से शहर चली जाती है| शहर पहुँचकर वह एक झुग्गी झोपड़ी में कमरा किराये से लेती है और वही अपने बच्चे के साथ रहने लगती है| घर का ख़र्च चलाने के लिए वह, गली गली खिलौने बेचने का काम शुरू कर देती है और उसी से, अपने बच्चे का गुज़ारा करने लगती है| विक्रम को गरीबों वाली ज़िंदगी पसंद नहीं आ रही थी| उसे खाने को दो वक़्त की रोटी तक, ढंग से नसीब नहीं हो रही थी| कई बार विक्रम को कचरे से खाना उठाकर खाना पड़ता है| विक्रम के सारे ठाठ जा चुके थे और वह अपनी बेसहारा माँ के साथ, शहर में दर दर की ठोकरें खाने आ चुका था| धीरे धीरे उसे ग़रीबी में जीने की आदत होने लगती है| विक्रम को जो मिलता, वह वही खा लेता| विक्रम को रह रह कर, अपने पिता की याद आती है, क्योंकि पिता की राज में उसे, 56 भोगों से सुशोभित, भोजन प्राप्त होता था, लेकिन आज वह, एक एक निवाले के लिए तरस रहा है| एक दिन विक्रम रास्ते में किसी से खाना माँग रहा होता है, तभी रास्ते से गुज़र रही कार में बैठा एक व्यक्ति, उसे पहचान लेता है, क्योंकि वह कई बार, विक्रम के पिता जी से मिलने, हवेली जा चुका था| वह विक्रम के पास पहुंचकर, अपनी कार रोक देता है और गाड़ी से उतरकर, विक्रम से उसके हालातों की वजह पूछता है| बड़े दिनों बाद, विक्रम से किसी ने उसके हालातों पर चर्चा की थी, अचानक विक्रम फूट फूटकर रोने लगता है| वह उन्हें अपना समझकर, सारा दुख बयान कर देता है|

sauteli maa motivational story in hindi
प्रेरणादायक कहानी

यह व्यक्ति एक बहुत बड़े व्यापारी थे और वह जमींदार को, अपना अच्छा दोस्त समझते थे, लेकिन व्यापारिक यात्राओं के कारण, कई सालों से वह जमींदार से मिल नहीं पाए थे, जैसे ही उन्हें जमींदार की मौत का पता चला तो, उन्हें भी बहुत बड़ा झटका लगा| वह विक्रम से कहते हैं, “तुम लोग इस समय कहाँ रह रहे हो बेटा”| विक्रम उन्हें अपनी झोपड़ी में ले जाता है और अपनी माँ से मिलाता है| वह उनकी कुछ मदद करना चाहते है, इसलिए कुछ पैसे निकालकर, विक्रम की माँ के हाथों दे देते हैं, लेकिन वह खिलौनों से इतना कमाने लगी थी कि, अब वह किसी का एहसान नहीं लेना चाहती थी, जैसे ही इन्हें पता चलता है कि, विक्रम की माँ खिलौने बेचती है| वह ख़ुश हो जाते हैं, क्योंकि इत्तफ़ाक से, इनकी भी एक खिलौनों की फ़ैक्ट्री है और इन्हें एक अच्छी सेल्स गर्ल की तलाश थी| विक्रम की सौतेली माँ सड़क पर खिलौने बेचते बेचते, एक कुशल विक्रेता बन चुकी थी और वह इनकी कंपनी में नियुक्त होते ही, अपनी कड़ी मेहनत और लगन से दो सालों के अंदर, ख़ुद की एक छोटी सी खिलौने बनाने की फै़क्टरी खोल देती है और अब धीरे धीरे इनकी ज़िंदगी बदलने लगती है| विक्रम भी अपनी सौतेली माँ के साथ, खिलौनों की फ़ैक्ट्री में काम करने लगता है| इनकी फ़ैक्ट्री के बने हुए खिलौनों की माँग, देश विदेश तक होने लगती है और कुछ ही सालों में, उनकी कंपनी का नाम पूरे देश में होने लगता है और कड़े संघर्ष के बाद जमींदार की पत्नी, एक अरबपति महिला बन जाती है| उन्होंने अपने बेटे के लिए, फिर से वही ज़िंदगी लाकर रख दी थी, जिसकी उसे आदत थी| विक्रम अपनी सौतेली माँ के त्याग और मेहनत का एहसान नहीं चुका सकता था| वह अपनी सौतेली माँ को, भगवान की तरह पूजने लगता है और गमों बादल छँटते ही, खुशियों की वारिस के साथ, यह कहानी ख़त्म हो जाती है|

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